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बीवी की सहेली पे दिल आ गया
दोस्तो, आप मुझे जानते ही होंगे, मैं अन्तर्वासना का पुराना लेखक हूँ. मैंने करीब 200 कहानियां अन्तर्वासना पर लिखी हैं. आज आपको मैं इस नयी साईट पर अपने एक पाठक की भेजी हुई कहानी बताने जा रहा हूँ। इन पाठक महोदय ने अपने अंदाज़ में कहानी लिख कर भेजी थी, मगर मैंने उसे सिर्फ उनसे पूछ पूछ कर इस कहानी को थोड़ा और रोचक बनाया है.
लीजिये पढ़िये।

दोस्तो, मेरा नाम रत्न लाल है, मेरी उम्र इस वक्त 50 साल की है। मैं मेरी पत्नी और मेरा बेटा … बस यही मेरा परिवार है।

अभी कुछ समय पहले मेरी पत्नी की एक सहेली बनी। वो औरत हमारे मोहल्ले की दूसरी गली में रहती है। दोस्ती की वजह यह हुई कि मेरी पत्नी और उस औरत, दोनों का नाम रूपा है। उस औरत रूपा के दो बेटियाँ है, बड़ी बेटी दिव्या 20 साल की है, और छोटी बेटी रम्या 18 साल की है। छोटी लड़की तो पतली दुबली सी, साँवली सी है। बड़ी लड़की दिव्या भी पतली है मगर वो गोरी है, देखने
में भी सुंदर है और अभी बी ए कर रही है।

रूपा का पति पहले तो यहीं रहता था और दोनों मियां बीवी छोटे मोटे काम करके अपना गुज़ारा करते थे तो घर के हालात कुछ खास अच्छे नहीं थे।
फिर रूपा के पति को विदेश जाने का मौक़ा मिला तो वो पैसा कमाने विदेश चला गया।

वैसे तो हमारा एक दूसरे के घर आना जाना हो जाता था। मगर जब रूपा का पति विदेश चला गया तो मुझे रूपा कुछ विशेष लगने लगी। हालांकि रंग रूप में, या शारीरिक बनावट में वो मेरी पत्नी के मुक़ाबले कहीं भी नहीं ठहरती थी मगर पराई औरत तो पराई औरत ही होती है। अच्छी न भी हो, तो भी बस उसके मम्मे, उसकी गाँड, उसकी फुद्दी आपको अपनी ओर आकर्षित करती ही करती है।

मेरे मन में भी कई बार इस बात का ख्याल आया कि रूपा को थोड़ा टटोल के देखूँ, पति इसका पास में नहीं, तो रात को ये भी तो बिस्तर पर करवटें बदलती होगी. अगर किसी तरह से बात बन गई, तो अपने को बाहर मुँह मारने का मौका मिल जाएगा।

हालांकि मैं उसके घर कम जाता था, मैं तो अपने काम धंधे में ही बिज़ी रहता था मगर कभी कभार आना जाना हो जाता था या कभी कभी वो भी आ जाती थी।

अब मेरी बीवी के साथ उसका अच्छा दोस्तना था, वो मेरी बीवी को दीदी और मुझे जीजाजी कहती थी। मगर मैंने कभी उसके साथ साली कह कर कोई हंसी मज़ाक नहीं किया, मैं थोड़ा रिज़र्व ही रहता था. हाँ उसकी बेटियों के साथ मैं हंस बोल लेता था।

पति के विदेश जाने के बाद उसने घर के कई कामों में कई बार मेरी मदद भी ली मगर मैंने खुद आगे बढ़ कर कभी कुछ नहीं किया. मेरे और रूपा के बीच मेरी पत्नी हमारी कड़ी थी। सारा
काम, बातचीत मेरी पत्नी के द्वारा ही होती थी।

मगर एक बात जो मैं नोटिस कर रहा था कि रूपा का व्यवहार अब बदलने लगा था। जब भी मौका मिलता उसे, वो मुझे जीजाजी कह कर खूब हंसी मज़ाक कर लेती। मुझे अक्सर लगता कि वो अपनी आँखों से अपनी बातों से अपने हाव भाव से यह जता रही थी कि जीजाजी हिम्मत करो और मुझे पकड़ लो, मैं आपको ना नहीं करूंगी।

मगर मैं अपनी पत्नी के सामने होते उसे कैसे पकड़ सकता था।

समझती वो भी थी कि जब तक हम अकेले नहीं मिलते तब तक कोई भी सम्बन्ध हमारे बीच नहीं बन सकता था। मगर अकेले मिलने का कोई भी मौका हमें नहीं मिल रहा था।

हमारी दोस्ती या यूं कहो कि दिल में छुपा हुआ प्यार इसी तरह चल रहा था। अपने अपने मन में हम दोनों तड़प रहे थे। मैं कम तड़प रहा था, वो ज़्यादा तड़प रही थी। वो कई बार कह भी चुकी थी- जीजाजी, आपके पास कार है, मुझे कार चलानी सिखाइए। जीजाजी, किसी दिन अपन दोनों कोई फिल्म देखने चलते हैं। मेरी तो इच्छा है कि बरसात हो रही हो, और हम दोनों जीजा साली कहीं दूर तक गाड़ी में घूम कर आयें।

ये सब बातें वो बातों बातों में मेरी पत्नी के सामने कह चुकी थी और ऐसी ही बातों से मेरे दिल में ये विचार आए कि शायद ये मुझसे अकेले मिलने का बहाना ढूंढ रही है।
फिर एक दिन उसने और बड़ा ब्यान दाग दिया।
हुआ यूं कि हम बाज़ार गए थे, वहीं वो भी मिल गई, अपनी दोनों बेटियों के साथ। तो औपचारिकतावश हमने उन्हें शाम के खाने का न्योता दिया।
वो झट से मान

हम एक मिठाई की दुकान में गए, ऊपर उनका ही रेस्टोरेन्ट बना था। सब कुछ शाकाहारी था। हमने वहाँ बैठ कर खाना खाया।

अब उसकी बड़ी बेटी मेरे साथ बैठी जबकि रूपा, उसकी छोटी बेटी, और मेरी पत्नी मेरे सामने बैठी।
दिव्या वैसे भी मेरे से बहुत स्नेह करती थी।

हम दोनों चुपचाप बैठे खाना खा रहे थे, वो रूपा बोली- देखो दोनों कैसे बिल्कुल एक ही स्टाइल से खाना खा रहे हैं, जैसे दिव्या आपकी ही बेटी हो।
मैंने कहा- हाँ, मेरी बेटी है।
अब मैं और क्या कहता।
मगर तभी रूपा बोली- आपकी कैसे हो सकती है, हम कभी मिले तो है नहीं?

मैं तो सन्न रह गया। मिले नहीं मतलब सेक्स नहीं किया। मैंने सोचा- अरे भाई ये तो चुदवाने के चक्कर में है, और मैं यूं ही शराफत में मारा जा रहा हूँ।
मगर उस वक्त मैंने सिर्फ हाथ उठा कर आशीर्वाद देने का ढोंग कर दिया कि दिव्या तो मेरी आशीर्वाद से पैदा हुई बेटी है।
तो दिव्या बोली- मौसा जी, अगर आप बुरा न माने तो मैं आपको पापा कह लिया करूँ।
अब उस बेटी की यह नन्ही सी प्यारी सी गुजारिश को मैं ना नहीं कर सका, मैंने कहा- हाँ, बेटा, मुझे तो खुशी होगी, मेरी कोई बेटी नहीं, तुम मेरी बेटी बन जाओ।

उस दिन के बाद दिव्या मुझे हमेशा पापा ही कहती। मगर छोटी बेटी कभी पापा तो कभी मौसा जी कह देती थी। उसके साथ मेरा रिश्ता ठीक ठाक सा ही था क्योंकि वो चुप ज़्यादा रहती थी।

फिर एक दिन दिव्या ने मुझसे मेरा फोन नंबर मांगा, उसके बाद वो मुझे कभी कभी फोन भी करती, सुबह शाम को कभी कभी मेसेज भी करती और मैं भी उसे अच्छे अच्छे मेसेज भेज दिया करता था जैसा कोई भी बाप बेटी करते हैं।

एक दिन मैं और मेरी पत्नी उनके घर गए, तो उस दिन रविवार था और वो सब लोग सर के बाल धोकर बैठे थे।
फिर दिव्या तेल ले कर आई और तीनों माँ बेटी एक दूसरी के सर में तेल लगाने लगी।

मैंने भी बैठे ने यूं ही कह दिया- अरे वाह, दिव्या, बहुत बढ़िया से तेल लगाती हो तुम तो!
वो बोली- पापा, आपके भी लगा दूँ?
मैंने कहा- हाँ, लगा दो।

जब उनका निबट गया तो दिव्या तेल की शीशी लेकर मेरे पास आई। मैं उनके दीवान पर बैठा था, वो मेरे पीछे आई और कटोरी से तेल लेकर मेरे बालों में लगाने लगी।
“आहह … हह … आहा …” कितना आनंद आया, जब बेटी पिता के सर में तेल लगाये अपने नर्म नर्म हाथों से।

रूपा बोली- अरे जीजाजी, मैं लगा दूँ आपके तेल?
उसकी बात में एक तंज़ मैं समझ गया मगर मैंने कहा- अजी नहीं शुक्रिया, बिटिया बहुत बढ़िया लगा रही है।

उसके बाद उनके घर ही हमने खाना खाया और जब वापिस आए, तो अपनापन दिखाने के लिए रूपा ने पहले मुझे नमस्ते बोली और फिर आगे बढ़ कर मुझे आलिंगन भी किया. मगर उसने आलिंगन करते हुये अपना मम्मा मेरी बगल से अच्छे से रगड़ दिया और मेरी तरफ देख कर शरारत से मुस्कुराई।
वो मुझे साफ से साफ इशारे कर रही थी कि आओ मुझे पकड़ो मगर मैं ही ढीला चल रहा था।

मैंने सोचा कि अब अगर एक भी मौका और मिला, तो मैं रूपा से बात कर लूँगा।

फिर एक दिन मौका मिला, वो हमारे घर ही आई हुई थी, मेरी बीवी रसोई में थी। मैंने पूछा- अरे रूपा, तुमने मेरा मोबाइल नंबर लिया था, पर कभी फोन तो किया नहीं?
वो बोली- आप तो वैसे ही कम बात करते हो, क्या पता फोन पर बात करो भी या नहीं।
मैंने कहा- अरे नहीं, मैं तो बल्कि इंतज़ार कर रहा था कि कभी हैलो हाई, नमस्ते, गुड मॉर्निंग, आई लव यू, कुछ तो मेसेज करो।
वो मेरी बात सुन कर बहुत हंसी, बोली- अच्छा अब करूंगी।

और अगले ही दिन सुबह उसका मेसेज आया ‘गुड मॉर्निंग’ का। जवाब में मैंने भी उसको गुड मॉर्निंग का मेसेज भेजा। और दिन में ही हम दोनों ने 40 करीब व्हाट्सअप मेसेज एक दूसरे को कर दिये।

जितना मैं खुल कर चला, वो उससे भी ज़्यादा खुल कर चली और अपने जीजा साली के रिश्ते की सारी मान मर्यादा तोड़ कर हम दोनों ने एक दूसरे को खुल्लम खुल्ला प्यार का इज़हार तक कर दिया। यहाँ तक के उसने ये भी कह दिया कि अगर आप न कहते तो मैं खुद ही कहने वाली थी।
अब जब प्यार का इज़हार ही हो गया, तो और क्या बाकी रहा। वो पूरी तरह से मेरे साथ सेट हो चुकी थी। मन में खुशी के लड्डू फूट रहे थे कि यार कमाल हाई, 50 साल की उम्र में भी माशूक पटा ली।

उसके बाद तो अक्सर हम फोन पर बाते करते, दो तीन दिन में ही, बातें शीशे की तरह साफ हो गई। दोनों ने एक दूसरे से कह दिया कि अब जिस दिन भी मिलेंगे, अकेले में मिलेंगे, और उसी दिन हम सभी हदें पार कर जाएंगे।

मैंने सोचा, अब माशूक के पास जाना है, तो पूरी तैयारी के साथ जाया जाए। बुधवार की मैंने अपने काम से पहले ही एक दिन की छुट्टी ले ली थी।
मगर मंगलवार को मैंने कुछ और काम भी किया। मैंने आधी गोली *** की खा ली। यह गोली खाने से आप जब कहो, तब आपका लंड आपके इशारे पर खड़ा हो जाता है, और वो भी पूरा कड़क, पत्थर की तरह सख्त। बस इतना ज़रूर है कि ये गोली यूरिक एसिड बढ़ा देती है। मगर इसका असर 2-3 दिन रहता है।

बुधवार की सुबह मैंने एक चने के आकार की गोली अफीम की कड़क चाय के साथ निगल ली। अब सफ़ेद गोली लंड को खड़ा रखने के लिए और काली देर तक न झड़ने के लिए।

हमारा 11 बजे मिलने का प्रोग्राम था। मगर मैं 10 बजे से पहले ही हर तरह से तैयार था। करीब पौने 11 बजे मैंने रूपा को फोन करके पूछा- हां जी क्या हाल हैं साली साहिबा?
वो बोली- बहुत बढ़िया, आप सुनाओ।
मैंने पूछा- मैं तो सोच रहा था, सुबह सुबह आपके दर्शन हो जाते तो, सारा दिन बढ़िया गुज़रता।
वो उधर से बोली- तो आ जाइए, किसने रोका है, आपका ही घर तो है।

मैं तो उड़ता हुआ उसके घर पहुंचा। गेट खोल कर अंदर गया, अंदर घर में वो रसोई में कुछ कर रही थी। मैंने आस पास देखा, घर में और किसी के होने की आहट नहीं थी। मगर फिर भी मैं रसोई में गया, उस से नमस्ते की, उसका, बच्चों का हाल चाल पूछा।

फिर पूछा- बच्चे कहाँ हैं।
वो बोली- बड़ी कॉलेज, छोटी स्कूल। बस घर में मैं अकेली हूँ।
मतलब जो मैं पूछना चाहता था, वो उसने खुद बता दिया।

वो गैस पर चाय बना रही थी, मैं उसके पीछे जा कर खड़ा हो गया। दिल तो कर रहा था कि इसे पीछे से ही बांहों में भर लूँ, मगर फिर भी दिल में एक डर सा था। मगर फिर भी मैंने हिम्मत करके उसको अपनी बांहों में भर लिया।

वो एकदम से चौंकी- अरे जीजाजी, ये क्या कर रहे हो?
वो गुस्सा नहीं हुई तो मेरी भी हिम्मत और बढ़ गई, मैंने झट से उसकी गर्दन पर एक दो चुंबन जड़ दिये और उसे कस कर अपने से चिपका कर बोला- उम्म्ह … अहह … हय … ओह … मेरी रूपा, अब सब्र नहीं होता यार!
और मैंने उसकी गर्दन कंधो को चूमते हुये, उसका चेहरा घुमाया, और उसके गाल पर भी चूम लिया।

वो मुस्कुरा कर बोली- आप तो बड़े बेशर्म हो, छोटी साली तो बेटी जैसी होती है।

में आपने पढ़ा कि मेरा दिल मेरी बीवी की सहेली पर आ गया. वो भी मेरे ऊपर मरती थी तो हमारी बात बन गयी. मैं उसके घर में उसके साथ था.
अब आगे:

मैंने थोड़ी और बदतमीजी की और उसके दोनों मम्मे भी पकड़ लिए और दबा कर बोला- साली आधी घर वाली होती है।
जब उसके मम्मे दबाये तो उसने हल्की सी चीख मारी, मगर ये चीख आनंद से ओत प्रोत थी।

दो प्यासे जिस्म, घर में कोई नहीं।

मैंने उसे अपनी और घुमाया और उसे फिर से कसके अपनी बांहों में जकड़ा और उसके होंठों को चूम लिया. जैसे ही होंठों से होंठ मिले, उसने पीछे को हाथ घुमा कर गैस बंद कर दी और फिर उसने भी मुझे अपनी आगोश में कस लिया।

जितना मैंने उसके होंठ चूसे, उतना ही वो भी मुझे चूस रही थी, बल्कि वो तो मेरे नीचे वाले होंठ को काट रही थी, चबा रही थी। बेशक ये मेरे लिए थोड़ा दर्दनाक था मगर इसमे मज़ा भी बहुत आ रहा था।

एक प्यासी औरत कामरस की बारिश में भीगने को आतुर थी।

मैंने उसकी पीठ को भी अपनी मुट्ठियों में ऐसे भींचा जैसे मैं उसके मम्मे दबा रहा होऊँ। फिर उसकी एक टांग उठा कर पास की तिपाई पर रख दी, और फिर उसका वो चूतड़ और जांघ को मैंने खूब सहलाया और उसके चूतड़ पर खूब सारे हाथ भी मारे।

उसके बर्ताव से लग रहा था कि वो मुझे चूस चूस कर ही झाड़ देगी। मगर अब आगे बढ़ने का वक्त था। मैंने उसे अपनी गोद में उठाया और हाल में ले गया।

हाल में बिछे दीवान पर मैंने उसे लेटाया और खुद भी उसके ऊपर ही लेट गया। उसने खुद ही अपने हाथ अपने सर के पीछे ऊपर को फैला दिये. जब मैं उसके ऊपर लेटा तो उसने अपनी टांगें फैला कर मेरे जिस्म को अपनी जांघों में जकड़ लिया।

एक औरत का पूर्ण समर्पण था ये; हाथ पीछे … ताकि मैं उसके चेहरे उसके स्तनों के साथ कुछ भी कर सकूँ। टांगें पूरी खुली … ताकि मैं उसकी जांघों, उसकी फुद्दी के साथ कुछ भी कर सकूँ।

मैंने उसके दोनों मम्मों को अपने हाथों में पकड़ा। वो वैसे ही शांत बहती हुई नदी की तरह मुझे देख कर मंद मंद मुस्कुरा रही थी। मैंने उसके मम्मे दबाये, हिलाये, ऊपर को उठा कर उसका बड़ा सारा क्लीवेज उसकी कमीज़ के गले से बाहर निकाल कर देखा।

एक शानदार क्लीवेज, जिसे मैंने अपनी जीभ से ही चाट लिया, और फिर अपने दाँत से ज़ोर से काट कर उसके मम्मे पर अपने दाँतों का निशान बनाया।
वो बोली- अरे दर्द होता है जीजाजी, ये क्या किया, देखो निशान भी डाल दिया।

मैंने कहा- इसी लिए तो काटा है मेरी जान … ताकि कल को परसों को जब भी तू नहाएगी, इस निशान को देखेगी, तो मुझे याद करेगी।
वो बोली- तो फिर एक निशान क्यों, सारे बदन पर निशान बनाओ।

मैं उसकी बात सुन कर मुस्कुरा दिया, वो भी हंस दी।

मैंने उसकी कमीज़ ऊपर उठाई और उतार ही डाली। हल्के गुलाबी रंग की ब्रा पहनी थी। बदन के गेहुएँ रंग पर गुलाबी ब्रा अच्छी लगी। मैंने उसके हुक खोले और ब्रा भी उतार दी। दो मोटे, गोल मम्मे जिन पर गहरे भूरे रंग के दो उभरे हुये निप्पल।

उसके नंगे मम्मे मैंने अपने हाथों में पकड़ कर दबा कर देखे, वो फिर से लेट गई। मैं भी उसके ऊपर झुक गया, मगर उसके मम्मों से खेलने के लिए।
वो मेरे सर के बालों को सहलाने लगी और मैं उसके मम्मों को चूसने लगा. चूसते चूसते मैंने कई बार उसके मम्मों पर यहाँ वहाँ काटा; ज़ोर से काटा के निशान बन जाए मगर वो भी रब की बंदी मेरे हर बार काटने पर सिसकारियाँ तो भरती मगर कभी भी उसने मना नहीं किया।
उसके दोनों मम्मों पर मैंने काटने के 5-6 गहरे निशान बना दिये।

फिर मैंने उसके पेट पर चूमा, कमर को भी गुदगुदाया। गुदगुदी होने पर वो खूब हंसी। मैंने उसकी सलवार का नाड़ा खोला और खींच कर उसकी सलवार खोल दी और फिर उतार भी दी।
मेरे सामने वो बिल्कुल नंगी लेटी थी। कितने दिनों, महीनों से मैं उसके बारे में ऐसा सोचता था; आज वो दिन आया था, जब मैंने उसे पूर्ण रूप से नंगी देखा था।

वो बोली- क्या देख रहे हो जीजाजी?
मैंने कहा- मैंने जब तुम्हें पहली बार देखा था, तब सोचा था कि अगर कभी मौका मिले तो मैं तुम्हें नंगी देखना चाहूँगा। आज मुझे वो मौका मिला।
वो बोली- मैं बताऊँ, जब मैंने आपको पहली बार देखा, तब मेरे दिल में भी ये ख्याल आया था; आपसे सेक्स करने का। मगर आप ऐसे बुद्धू कि अपनी बीवी के नाड़े से ही बंधे रहे।

मैंने कहा- अरे यार देखो, अब बात ये है कि मुझे अपनी बीवी से ज़्यादा और कोई सुंदर लगती ही नहीं। तो मैं किसी और को देखता ही नहीं। ऐसी बात नहीं है कि मैं तुम्हारे इशारे नहीं समझ रहा था. मगर क्या करता, हर बार बीवी साथ थी, तो तुमसे अपने दिल बात कहता तो कहता कैसे?
वो बोली- तो अब कह दो; अब तो आपकी बीवी भी आपके साथ नहीं है।

मैंने अपनी कमीज़ खोली, अपनी पैन्ट, बनियान चड्डी सब उतार दी, और रूपा के सामने बिल्कुल नंगा हो गया।
“लो मेरी जान!” मैंने रूपा से कहा- आज मैंने अपना सब कुछ तुम्हें सौंप दिया.

वो उठ कर खड़ी हुई और मेरे पास आ कर मुझे लिपट गई। हम दोनों के नंगे बदन एक दूसरे से जैसे चिपक गए हों। कितनी देर हम एक दूसरे के बदन से चिपके रहे, इस एहसास से चिपके रहे कि जिसको इतने महीनों से देख देख कर मन मसोसते थे, आज वो बिल्कुल नग्न मेरी बांहों में है।

मेरा पूरा तना हुआ लंड हम दोनों के पेट के बीच में अटका हुआ था।

मैंने कहा- रूपा मेरी जान, मेरा लंड चूसेगी?
वो बोली- आज से पहले सिर्फ मेरे पति ने मुझे नंगी देखा है, उनके जाने के बाद मैंने आपको अपना तन मन सब अर्पण कर दिया है। आप बस मुझे धोखा मत देना। सब कुछ आपका है, जो कहोगे, मैंने करूंगी, आपकी बाँदी हूँ, गोल्ली हूँ, नौकर हूँ। जो समझो वो हूँ। आपका हुकुम मेरे सर आँखों पर!

कहते कहते वो नीचे को बैठ गई और अपने हाथ में मेरा लंड पकड़ा और उसकी चमड़ी पीछे हटा कर उसने मेरे लंड का टोपा बाहर निकाला और अपने मुँह में ले लिया। अब मेरी पत्नी थोड़ा नखरे
करती है, रूपा का एकदम से मेरा लंड चूसना मुझे अंदर तक गुदगुदा गया।

बहुत आनंद आया जब उसके होंठों ने मेरे लंड को अपनी आगोश में कस लिया।

मैं दीवान पर ही बैठ गया और वो मेरे सामने फर्श पर बैठी, मेरे दोनों चूतड़ों को अपने हाथों में पकड़े और अपने मुँह में मेरा लंड भरे, उसे चूसने में मस्त थी।
हालांकि मेरा लंड कोई बहुत बड़ा नहीं है, सिर्फ 6 इंच का ही है, एक आम साधारण सा ही लंड है। मगर प्यासी औरत को तो ढाई इंच का लंड भी ठंडा कर सकता है।

मैं उसके सर को सहला रहा था, उसके बदन को अपने पाँव से मसल रहा था। मोटी चर्बी से भरी कमर, पेट, जांघें। हिलाओ तो लहरें उठती थी बदन में।

कुछ देर चुसवा कर मेरा भी दिल करने लगा कि मैं भी उसकी फुद्दी चाट कर देखूँ। मैंने उसे कहा- रूपा, ऊपर बेड पर आ कर लेट जाओ।
वो उठी और बेड पर लेट गई।
मगर जब मैं उसके ऊपर उल्टा हो कर लेटने लगा, तो वो मुझे रोकते हुये बोली- नहीं नहीं, चाटना मत। मैं बस एक दो मिनट से ज़्यादा नहीं टिक पाऊँगी। आप अंदर डालो, और शुरू करो।
मैंने उसकी फुद्दी देखी, पानी की दो तीन बारीक धारें उसकी जांघों तक बह आई थी। मतलब वो इतनी गर्म थी, इतनी प्यासी थी कि बिना छूये भी झड़ने के करीब थी।

मैंने उसकी टांगें खोली और अपना लंड उसकी फुद्दी पर रखा, और जैसे ही मेरा लंड उसकी फुद्दी में घुसा, उसने अपने नाखून मेरे कंधों में गड़ा दिये- ओह … मेरे मालिक!
उसकी आँखें बंद, होंठ खुले।

मैंने अपने होंठों से उसके होंठ पकड़ लिए और अपनी जीभ उसके मुँह में घुमाई। कुछ कहने की ज़रूरत नहीं पड़ी, वो मेरी जीभ को चूसने लगी, और नीचे से अपनी कमर भी चलाने लगी।

अभी मुश्किल से एक मिनट भी नहीं हुआ था कि उसने मुझे अपने आगोश में कस के जकड़ लिया, अपनी कमर ऊपर को हवा में उठा ली और मुझे बोली- उम्म्ह … अहह … हय … ओह … ज़ोर से … और ज़ोर से चोदो जीजाजी मुझे!
मैं एकदम से तेज़ गति से अपनी बीवी की सहेली यानि मुंह बोली साली को चोदने लगा।

और अगले ही पल वो अपनी जांघों से कभी मेरी कमर को जकड़ लेती, कभी छोड़ देती। ऐसा उसने कई बार किया. मैंने भी महसूस किया, जैसे उसकी फुद्दी से बेशुमार पानी बह निकला हो।

मैंने उसके गाल पर काट लिया, मगर हल्के से … कि निशान न पड़े।

पहले तो उसकी तड़प तेज़ थी मगर फिर धीरे धीरे उसकी तड़प शांत होती गई। जब उसकी जांघों की जकड़ ढीली पड़ी तो मैंने फिर से चुदाई शुरू करी। मगर वो बहुत शांत, संतुष्ट मेरे नीचे लेटी थी। उसने अपनी टांगें हवा में उठा ली, जिस से उसकी फुद्दी पूरी तरह से खुल गई। मैं उसे घपाघप चोदने लगा।

अब मैं तो पूरी तैयारी के साथ आया था क्योंकि उस पर धाक जमाने के लिए, मुझे उसे खूब सारा चोदना था।

करीब 5-6 मिनट की चुदाई के बाद वो बोली- मैं घोड़ी बनना चाहती हूँ।
मुझे क्या ऐतराज हो सकता था, मैं पीछे हटा तो वो मेरे सामने घोड़ी बन गई।

अपना लंड मैंने उसकी फुद्दी में डाला तो वो खुद आगे पीछे कमर हिला कर चुदवाने लगी।
मैंने कहा- अरे वाह, तू तो मस्त चुदवाती है।
वो बोली- अरे मेरे मालिक, अभी तो देखते जाओ, मैं आपको कैसे कैसे निहाल करती हूँ।
मैंने कहा- तो रोका किसने है … करो निहाल!

कुछ देर खुद ही घोड़ी बन कर चुदवाने के बाद वो आगे को बढ़ी, मेरा लंड उसी फुद्दी से बाहर निकल गया। उसने मुझे धकिया कर नीचे लेटा दिया और खुद मेरे ऊपर आ गई। मेरा लंड पकड़ा और अपनी फुद्दी पर रख कर खुद ही अंदर ले लिया। अपने दोनों हाथ मेरे सर के अगल बगल रख कर वो मेरे ऊपर झुक गई।

मैंने उसके झूलते हुये मम्मे देखे तो उसने अपने हाथ से पकड़ कर अपना मम्मा मेरे मुँह में दिया- पियो मेरे मालिक!
वो बोली।

मैंने कहा- अरे यार … ये मालिक मालिक क्या है? मुझे मेरे नाम से पुकारो।
वो बोली- आप मेरे मालिक हो … जैसे कहोगे, वैसे ही करूंगी।

मैंने बारी बारी से उसकी मम्मे चूसे।

एक बात तो है, प्यासी औरत जब खुद सेक्स करती है तो मर्द को वो मज़ा देती है, जो मर्द उसे खुद चोद कर भी नहीं ले सकता। मुझे बिल्कुल ऐसा महसूस हो रहा था जैसे मैं जन्नत में हूँ और कोई बहुत ही समझदार औरत मुझे सेक्स करना सीखा रही है।
क्योंकि इतना मज़ा तो मुझे पिछले 26 सालों में मेरी पत्नी भी नहीं दे सकी जबकि मैं उसके साथ भी ये सब आसन कर चुका था।
इस रूपा से चुदवाने का मज़ा ही कुछ और था। ऊपर बैठ कर उसकी फुद्दी मुझे बहुत ही कसी हुई लग रही थी या शायद उसे ही पता था कि फुद्दी को टाइट करके कैसे चोदा जाता है कि मर्द को और मज़ा आए।

थोड़ी देर बाद मैंने कहा- रूपा नीचे आ जाओ!
वो मेरे ऊपर से उठी और बेड पर सीधी लेट गई। मैं उसके ऊपर आया, उसने खुद मेरा लंड पकड़ कर अपनी फुद्दी पर रखा। इस बार हमारा मुक़ाबला बड़े ज़ोर का रहा। वो एक बार झड़ चुकी थी तो दूसरी बार उसने भी खूब टाइम लिया.

इधर मैं तो आया ही खा पी कर था तो मैंने तो लंबा टाइम खेलना था। दोनों में जोश भरपूर था, वो भी अपनी फुद्दी से पानी पर पानी छोड़ रही थी, मेरा भी लंड पूरा पत्थर हो रहा था। इस बार तो मैंने उसे इतने ज़ोर से चोदा कि मैं तो पसीने से नहा गया. नीचे से वो भी अपनी कमर चला रही थी तो उसके चेहरे, कंधों, सीने, पेट और जांघों पर पसीना साफ दिख रहा था।

हमारी चुदाई ऐसे चल रही थी, जैसे दोनों में कोई मुक़ाबला चल रहा हो कि पहले कौन झड़ेगा। मगर वो नॉर्मल थी, तो ज़्यादा जोश में आने से वो फिर से पानी गिराने लगी।
नीचे से कमर उचकाती वो ज़ोर ज़ोर से बोली- चोद साले … और चोद … और चोद … आह, मार ज़ोर से मार मेरी … ले डाल, अंदर तक मार साले, फाड़ इसे, ज़ोर से मार लौड़ा … और ज़ोर से मार।

उसकी तड़प देख कर, मुझे इतनी खुशी हो रही थी, जैसे मैंने आज पहली बार सेक्स किया हो। और फिर उसने अपनी कमर पूरी तरह से ऊपर को उठा दी, और कमान की तरह अपने बदन को अकड़ा लिया। मैंने भी उसके मम्मों को अपने मुँह में भर के ज़ोर से काटा। इतने ज़ोर से कि मेरे दाँत उसके मम्मे में गड़ गए.

वो दर्द से चीखी, मगर उसके स्खलन का आनंद उसके दर्द पर भारी था। मेरी बांहों में वो जैसे बेहोश होकर ही गिर गई थी।

मैंने उसे बेड पर ठीक से लेटाया और जल्दी जल्दी अपना काम भी पूरा किया। उसकी तरफ से अब कोई प्रतिक्रिया नहीं आ रही थी। मैंने अपना माल उसके पेट पर गिरा दिया। वो सिर्फ शांत लेटी मुझे देखती रही।

उसको चोदने के बाद मैं भी उसकी बगल में लेट गया।

कितनी देर लेटे हम सिर्फ एक दूसरे की आँखों में देखते रहे; कोई बात नहीं की। धीरे धीरे हम दोनों की सांस में सांस आई।
वो मुझसे लिपट गई, उसकी आँखों में आँसू आ गए।
मैंने पूछा- क्या हुआ?
मगर वो बोली कुछ नहीं, बस रोती रही।

काफी रोने के बाद और मेरे बहुत समझाने के बाद वो चुप हुई। उसके बाद मैं उसे बाथरूम में ले गया और वहाँ हम दोनों एक साथ नहाये, फिर कपड़े पहने।

फिर उसने चाय बनाई और हम दोनों ने पी।

उसके बाद मैं अपने घर आ गया। आज इस बात को करीब 6 महीने हो गए हैं और इस दौरान मैं उसे सिर्फ 3-4 बार ही चोद पाया हूँ। मगर इन 6 महीनों में मैं उनके परिवार में इतना घुलमिल गया हूँ कि मुझे लगने लगा है जैसे मैं सच में ही दिव्या का बाप हूँ। वो भी बिल्कुल मेरी बेटी बन गई। मैं उसके साथ उसके कॉलेज में जा रहा हूँ, उसके साथ बाज़ार, मूवी देखने सब जगह।

मगर तब एक दिन मेरी ज़िंदगी में एक नया मोड़ आया।
वो क्या था … बताऊँगा अपनी अगली कहानी में।
alberto62lope@gmail.com

आगे की कहानी: मुंहबोली बेटी की मम्मी की चुदाई
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